Friday, 12 June 2015

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस एक निवेदन


योग व्यायाम मात्र नहीं एक जीवन शैली है एक निवेदन :-


अत्यंत हर्ष का विषय है कि ऋषियों की महानतम धरोहर योग की महत्ता को स्वीकार करते हुए पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष २०१५ से २१ जून को‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में आयोजित करने का निर्णय लिया है। 































भारतीय संस्कृति ने सदैव से सबके हित और सबके सुख की कामना की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और सामाजिक स्तर पर संतुलित जीवन को समग्र स्वास्थ्य माना है। इन चारों आधारों पर मानवीय स्वास्थ्य को स्थिर रखने की क्षमता योग में है। इसी आधार पर प्राचीन काल में भारत समर्थ राष्ट्र और जगद्गुरु बना रहा है। इन दिनों अधिकतर योग का प्रचलन शारीरिक संदीर्भ में ही हो रहा है, परंतु इसे समग्र जीवन की सफलता के मार्ग के रूप में आगे ले जाने की आवश्यकता है। ऋषियों ने इसे एक समग्र जीवन शैली के रूप में ही हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। इसका लक्ष्य मात्र रोगोपचार नहीं, आरोग्य और समग्र विकास है। 
  
भगवद्गीता के अनुसार ‘‘येागः कर्मसु कौशलम’’ अर्थात् कर्म की कुशलता ही योग है। योग के अनुसार यह कुशलता शारीरिक व्यायाम से लेकर अंतःकरण के शोधन तथा आत्मा- परमात्मा के मिलन- संयोग तक ले जाने में समर्थ होती है। ईश्वर सद्गुणों का समुच्चय है अतः योग हमें सद्गुणों से सम्पन्न सत्कर्मशील बनने की तथा निष्काम कर्म करने की कुशलता प्रदान करता है, साथ ही स्वस्थ- समृद्ध जीवन से महामानव स्तर तक विकसित करता है। 
‘‘योगः चित्तवृत्ति निरोधः’’- चित्तवृत्तियों को अनुशासित रखना योग है। चित्तवृत्तियों की उथल- पुथल रोककर योग हमारी प्रज्ञा- दूरदर्शी विवेकशीलता का जागरण करता है। यम- नियम के वैयक्तिक और सामाजिक अनुशासन के पालन से लेकर धारणा, ध्यान और समाधि की यौगिक जीवनशैली तथाकथिक आधुनिक- विकसित कहे जाने वाले मनुष्य के सामने खड़ी अनेकानेक समस्याओं का सार्वभौमिक समाधान है। मनुष्य के चिंतन का दुष्प्रवृत्तियों से सम्बद्ध हो जाना कुयोग है और सत्प्रवृत्तियों से सम्बद्धता सुयोग है। कुयोग से पतन और सुयोग से उत्थान सर्वत्र देखा जा सकता है। योग हमारे जीवन को कुयोग से बचाकर सुयोग की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करता है। 
  
ऋषियों की इस अनुपम देन को विज्ञान और अध्यात्म दोनों का समर्थन प्राप्त है। आज योग विश्व पटल पर एक उत्कृष्ट जीवनशैली के रूप में प्रतिष्ठित है। व्यक्तिगत जीवन में स्वास्थ्य और संस्थागत व्यवस्था में आदर्श प्रबंधन के रूप में योग का प्रयोग इन दिनों हो रहा है। रोगोपचार से लेकर गहन समाधि की उच्चतम अवस्था योग से सम्भव है। योग एक निरापद एवं अचूक प्रयोग है। 
स्वामी विवेकानन्द एवं महर्षि अरविंद ने योग को जीवन का आधार माना है। इसी क्रम में युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने स्वयं योगमय जीवन जिया और करोड़ों व्यक्तियों को योग के पवित्र व्यावहारिक मार्ग पर आगे बढ़ाया है। वे कहते रहे हैं कि ज्ञानयोगी की तरह सोचें एवं कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। उससे जो क्षमता विकसित हो उसे पीड़ा और पतन निवारण में नियोजित करें। इसी में योग की सार्थकता है। 
भारत की पहल पर योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है अतः आओ सब मिलकर इसे व्यापक बनाने की जिम्मेदारी भी उठायों। सच्चे योग साधक बनें, जीवन की शक्तियों को कुयोग से बचायें तथा सुयोग में लगायें।
Content courtesy - http://news.awgp.org/news.php?id=1888

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