Saturday 24 October 2015

जब हर नर राम व नारी सीता बन जाएगी

दशहरा- विजयदशमी पर्व समाज के लिए एक कटु सत्य का जीवंत उदाहरण है ।

विजयदशमी पर्व हमारे सामने है और हर वर्ष की भांति इसबार भी रावण के लंका का दहन होगा और अधर्म पर धर्म के जीत की एक झलक हम सब अपनी अपनी आँखों से देखेंगे । अगर हम ध्यान दे तो पाते है दशहरा- विजयदशमी का हर एक पात्र अपने सिमित दायरे में रह कर के समाज को एक सैद्धांतिक जीवन यापन करने की शिक्षा देता है ।
जब से पृथ्वी है तब से आज तक सदैव ही स्‍त्री देवी का स्‍वरूप रही है और पूज्‍य रही है क्योंकि नारी श्रद्धा के साथ साथ सृजन का पर्याय है इसलिए ही तो मनुस्मृति में कहा गया है कि " यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।" भारतीय संस्कृति में नारी की महत्ता का विशेष स्थान रहा है। उन प्राचीन संस्कारों को व्यवहार में लाने की आवश्यकता है और उनकी उपयोगिता को समझा जाना चाहिए; केवल प्राचीनता के नाम पर उसका परित्याग करना समझदारी नहीं है।
सर्वप्रथम रावण के भूमिका पर नजर डाले तो समस्त घटनाक्रम का एकमात्र सूत्रधार रावण ही है, जो बहुत पराक्रमी, ज्ञानी, संयमी, बलशाली होते हुए केवल एक अवगुण के वजह से सम्पूर्ण नाश को प्राप्त होता है और वो अवगुण है अहंकार। कितने भी गुणों के साथ एक अवगुण सारे गुणों को स्वाहा कर देता है, जब रावण जैसे पराक्रमी का अहंकार नहीं रहा अपितु रावण के संयमी होने का प्रमाण और नारी के सतीत्व के सम्मुख रावण सबकुछ देने के लिए तैयार था लेकिन अंत में कुछ भी हासिल न होते हुए भी उसने अपने संयमी होने का प्रमाण दिया और बिना मर्जी के सीता का स्पर्श तक नहीं किया, आज भी हमारे समाज में कुछ पात्र [असामाजिक तत्व] ऐसे हैं जो आज भी ही समाज में अपनी जगह बनाए हुए हैं जरूरत है उनके आचरण के बारे में समझने की और उन्हें परिवर्तित करने की|
लेकिन बेहद अफ़सोस है कि अधर्म रूपी रावण का दहन करने के बाद भी सर्वत्र बुराई का अम्बार है। रावण समाज में बुराई का प्रतीक है। हम हर साल रावण के पुतले जलाकर खुशियां मनाते हैं, लेकिन क्या हम अपने अंदर बैठे रावण को मार पाए हैं? यह एक यक्ष प्रश्न हमारे सम्मुख मुँह खोले खड़ा है और शायद इसका जबाब भी हम लोगों के पास है |
आइए इस विजयदशमी के पर्व पर हम उन बुराइयों को जड़ से मिटाने का संकल्प लें जिसने हमारे समाज को संक्रमित कर सामाजिक ढांचे को पंगु बना रखा है और इसको दूर करने के लिए सीता [नारी ] राम [पुरुष ] दोनों को एकजुट होकर के कदम बढ़ाना होगा।
आज कल के घटना क्रम पर ध्यान दे तो रामलीला के समय समाज में किसी भी अबोध बालिका का बलात्कार होना, केवल उस बालिका के साथ अन्याय नहीं, बल्कि उस समाज के सभ्य होने पर भी गंभीर प्रश्न खड़ा करता है आज लड़कियां खुद को कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं। छेड़खानी / अभद्रता की घटनाएं समाज की गिरती हुई नैतिकता को दर्पण की तरह दिखा कर समाज की वर्तमान व्यवस्था पर इतरा रही है । महिलाएं आज भले ही हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं, लेकिन समाज की दोहरी मानसिकता में परिवर्तन नजर नहीं आ रहा। आज महिलाएं तभी खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी, जब सभी खुद अपने अपने -अपने आचरण में बदलाव लाएंगे। दिनोंदिन बढ़ती इस पिशाच प्रवृर्ति में नियंत्रण के साथ रोक की जरूरत है तभी जाकर के एक बेहतर स्वस्थ समाज के नींव की कल्पना हो सकती है और इसके लिए एकजुट होकर के आगे आएं।
यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है, जिस नारी को समाज में "शक्ति" के रूप में हम सभी पूजा करते हैं, उसी नारी को, यही समाज गर्भ में ही मारने से संकोच तक नहीं करता ? मेरी यह व्यक्तिगत प्रार्थना तथा आप सब से निवेदन है कि इस विजयदशमी पर महिला सशक्तीकरण की शुरूआत हमलोग अपने - अपने घर से ही सुरु करें |
आज के माहौल में हर एक मनुष्य को अपने भीतर के रावण का दहन कर के राम के दिखाए मार्ग को प्रसस्त करने की जरूरत है क्योंकि जब हर घर का नर राम तथा हर नारी सीता बन जाएगी, तो रावण, सूर्पनखा का अपने आप ही ख़ात्मा हो जाएगा।


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