Monday 14 October 2013

काश भारतवर्ष में बापू का जन्मदिन प्रतिदिन होता !

आप सभी ने  समाचार पत्रों में या मदिरा [शराब] की दूकान के आस पास ऐसे वक्तब्य सूचना रूपी बड़े अक्षर में ““गाँधी जयंती के उपलक्ष्य में  देखे होंगे कि कल दुकान बंद रहेगी “” । Tomorrow will Dry Day !!|

यह देखकर काफी दुख होता है क्यों न Dry Day  कांसेप्ट को प्रतिदिन के लिए लागू कर दें या यूँ कहे तो प्रतिबंधित  ही हो जाये या फिर  हमारे देश में गाँधी जी का जन्म दिया प्रतिदिन मनाया जाये।

हम सभी जानते हैं शराब ने कई सारे घर बर्बाद कर दिए,  हर साल दो अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर हमे याद आता है कि अहिंसा के पुजारी और आज़ादी के अहिंसक आंदोलन के  इस  महान व्यक्तित्व ने शराब को व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विकास में सबसे बड़ा व्यवधान माना था .अपने सामाजिक आंदोलनों में उन्होंने शराब के खिलाफ जन-जागृति का भी शंखनाद किया था, आज हम केवल याद करके रह जाते हैं जरुरत है आत्मसात करने की ।

नशा नाश की जड़ है नशे की इस बीमारी ने कई  घरों को जहां आर्थिक रूप से बर्बाद कर दिया है, वहीं युवाओं में बढती इसकी लत से कई घरों के कुल-दीपक हमेशा के लिए बुझ गए . महानगरों में गाँवों में कस्बों में भी  इस घातक नशे की वज़ह से सामाजिक पर्यावरण भी बिगड़ने लगा है  आज कल अधिकाँश सड़क हादसे शराब पीकर वाहन चलाने वालों की वजह से होते हैं, शराबी वाहन चालक  दूसरों के लिए जानलेवा साबित होने के अलावा  स्वयं घायल होकर मौत का भी शिकार हो रहे हैं. इनमे भी ज्यादातर मौतें युवा वर्ग की हो रही है ।

शराब से अगर किसी  को सबसे ज्यादा परेशानी होती है तो वे हैं महिलाएं, क्योंकि गृहलक्ष्मी होने के नाते चूल्हे-चौके से लेकर घर के भीतर की सारी जवाबदारी उन्हीं पर टिकी होती है .शराब के नशे में चूर होकर देर रात घर आने और लड़ने-झगड़ने वाले पतियों को झेलना उनकी मजबूरी हो जाती है । नतीजन महिलाएं हीन भावना से ग्रसित होने लगती है और शनै शनै ही हँसता खेलता परिवार कुंठाग्रस्त हो कर रह जाता है ।

छोटे बच्चे स्वभाव से ही अनुकर्णीय होते है और प्रतिदिन की नकारात्मक गतिविधियों को देखते हुए वो अपने आप को इसका हिस्सा समझने लगते है नतीजन पिता को देख कर के पुत्र भी उसी राह चल पड़ता है। फलस्वरूप  घर की औरत प्रतिदिन एक प्रताड़ना, हिंसा की शिकार तथा आर्थिक रूप से दरिद्रता की मूरत बन के रह जाती है।


आवश्यकता है जागरूकता  के साथ साथ प्रतिबन्ध का, पूर्णनिषेध का,  जिसके फलस्वरूप किसी का घर न उजड़े। 

संपूर्ण स्वराज का मूलमन्त्र


महात्मा गाँधी ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन का नेतृत्त्व किया था और सम्पूर्ण विश्व जगत में उन्होंने  अहिंसा के दर्शन का प्रचार किया इसके फलस्वरूप संयुक्त रास्त्र संघ द्वारा २००७ से २ अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है, इसलिए महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि सम्पूर्ण विश्व अहिंसा दिवस की महत्ता को समझ रहा है ।

गाँधी जी के अनुसार कोई भी देश तभी खुशहाल  और तरक्की कर सकता है जब वो आर्थिक रूप से मजबूत हो , और ये मजबूती तभी आ सकती है जब उस देश के हर नागरिक के पास रोजगार के अवसर हों | लघु उद्योग अथवा  कुटीर उद्योग किसी भी देश की बुनियाद होती है स्वदेशी आंदोलन ब्रितानी शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की समग्र आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए अपनाया गया साधन था। गांधी जी ने इसे स्वराज की आत्मा कहा था। आजादी के समय जब देश की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी, तब देश के नेताओं ने स्वदेशी का नारा दिया था। उनका स्पष्ट उद्देश्य देश के छोटे-बड़े उद्यमियों व व्यापारियों को बढ़ावा देना था, आज हम गाँधी जी के सपने खादी ग्रामोद्योग को लगभग भूलते ही जा रहे हैं ।

परन्तु जरूरत है, उस दिव्य स्वपन को साकार करने की, यदि आज  सम्पूर्ण भारतवर्ष में ५० प्रतिसत्त लोगों ने खादी निर्मित वस्तुवों का प्रयोग करना सुरु कर दिया तो शायद बापू का स्वपन साकार हो जायेगा और सम्पूर्ण देश में रोजगार का संकट अपने आप ही खत्म हो जायेगा तथा स्वराज स्वयं ही आ जायेगा जरूरत है- तो एक सुरुवात की, हमे लगता है आजकल काफी तकनीकी विकाश खादी में हो गए है कपड़े अच्छे डिज़ाइनर तथा आरामदायक भी हैं क्योंकि हमने तो खादी कपड़ो को अपनाया है।  जरूरत है तो बस सुरुवात करने की वो भी अपने आप से स्वयं से और इंतजार नहीं आज से ।

एक सविनय अनुरोध है, आप सभी से और  मुझे पूर्ण उम्मीद है, आप सब को पता होगा की २अक्टूबर से ३० परसेंट की छूट मुख्यतया सभी खादी दुकानों पर उपलब्ध होगी । अगर आपने इस समय का सदुपयॊग किया तो जाने अनजाने में आप भारत देश के उन लोगों को सहयोग दे रहें है जो गाँधी जी के सपने को साकार करने में लगे हैं और उन्हें उम्मीद है की आज नहीं कल स्वराज कायम होगा ।
जय हिन्द
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/seemagoel/entry/khadi-empowerment-in-india