Friday, 28 June 2013

उत्तराखंड त्रासदी हमारे विकास के मॉडल को चुनौती है

उत्तराखंड त्रासदी वर्तमान विकास के ऊपर एक प्रश्न चिन्ह है -और हमारे विकास के मॉडल को चुनौती है

त्रासदी को हमशब्दों में बयां नहीं कर सकते जिन्होंने अपने जन धन खोएं हैं उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती,

हम आभारी है उन सभी लोगों के जिन लोगों ने इस बीभत्स परिस्थिति में कंधे से कन्धा मिलाकर लोगो को बचाने में अपना योगदान दिया । सलाम है उन जवानों को जिन्होंने जान गंवाकर के भी अपने लोगों को बचाने में कोई कसर न छोड़ी  हम उनके साहसिक प्रयासों को तहे दिल से सलाम करते  हैं । ईश्वर इस आपदा में अपने प्रियजनों को खोने वाले लोगों को इसे सहने की शक्ति दे। दुख की इस घड़ी  में  समूचा भारतवर्ष  उनके साथ है ।


विकास ऐसा होना चाहिए जो प्रकृति के नियमानुकूल हो,  ना कि प्रकृति को अपने सुविधा अनुसार केवल और केवल दोहन और उसके बाद उसको उसी हाल पे छोड़ देना, ऐसा करना ही ऐसे त्रासदी को निमंत्रण देते हैं.

कुदरत के साथ बदसलूकी इतनी महंगी पड़ेगी इसका अंदाजा शायद किसी को नहीं था।  हम में से बहुत से लोगों ने अत्यंत ही नजदीक से पर्वतीय क्षेत्रो में कुदरत द्वारा स्थापित पेड़, जंगल, घाटियाँ आदि देखी है या देखी होंगी।  

जिस प्रकार से संसाधनों का दोहन हो रहा है, दिन प्रति दिन पर्वतो और पेड़ों की कटाई और होटल का निर्माण, पानी को रोकना और जगह जगह नदियों के पानी को रोक कर के बांधो का निर्माण अपने आप में एक बहुत बड़ा कारण है 

जिसको हमने विकास का नाम दिया है शायद वास्तविक रूप से अगर देखा जाये तो वो प्रकृति  के विनाश  का ही रूपांतरण है । जिस स्थान पर पर्वत श्रिंखला दिखती थी। उन जगहों पर हाईवे बना दिया नतीजन जो पर्वत और पेड़ पहाड़ो को बांधे रखने का काम करते थे वो सारे अलग थलग पड़ गए। पेड़ की लगातार कटाई पर्वतों को नंगा करता गया और  ऊपर से आने वाले पानी के धार में रूकावट ना होने के कारण जलधारा का वेग बढ़ा और बढ़ी हुई पानी की मात्रा  ने बाढ़ का रूप ले लिया । पहले ढलान पर किसान वेदिका बना कर के खेती का काम करते थे । 

आज वेदिका के स्थान पर होटल दुकान और क्या क्या बन गए जिस से पानी की धारा को रोकना असंभव हुआ  और नहीं तो हमने नदी के रास्ते को सड़क बना दिया अर्थात यह कहे की मनुष्य ने प्रकृति प्रदत चीजों का अतिक्रमण कर लिया और अतिक्रमण किसी भी रूप में हो प्रकृति को स्वीकार्य नहीं है। हमने अभी हाल में ये समाचार देखा कि उत्तराखण्ड में ढेर सारे पॉवर प्रोजेक्ट चल रहे हैं या मूर्त रूप लेने वाले हैं । इतनी कुर्बानी  देकर ये विकाश का तांडव न्य्यायोचित नहीं है


समस्त मानव समुदाय के लिए यह एक सबक है की कुदरत के अनुरूप ही कार्य करें, जहाँ पर कुदरत की बनाई व्यवस्था  में अपने सुविधा अनुसार फेरबदल की कोशिश होगी तो स्वाभाविक है उसके दुस्परिणाम भी होंगे।

जिस स्थान को हम देव भूमि कहते हैं आजकल उन स्थानों को लगभग पर्यटन स्थान के रूप में चिन्हित करा दिया गया है, जिसका नतीजा मात्र २ वर्षों में गाड़ियों की संख्या दोगुनी हो जाती है और देवभूमि जगहों पर स्रधालु कम पर्यटकों की भीड़ ऐसी हो जा रही है जिसके कारण स्वाभाविक संतुलन असंतुलित होता  जा रहा है। यह विषय विचार और चिंतन का है | जिसको हमें समझाने और समझने की ज़रूरत है।

लेखिका सांवरी वोमेन पॉवर क्लब की संस्थापिका हैं